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भारतीय समाज में वर्ण- व्यवस्था : एक समीक्षात्मक अध्ययन
डॉ० सुरेंद्र सिंह
Page No. : 73-77
ABSTRACT
वर्ण-व्यवस्था का भारतीय समाज में एक विशेष स्थान था। यह प्राचीन भारतीय आदर्श समाज का मूल आधार रही है। वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीय ऋषियों ने मानवीय समाज को मानवीय गुणों व कर्मों के आधार पर चार वर्णों में विभाजित किया। इन चार वर्णों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के नाम से जाना जाता था। विभिन्न धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करने पर इस बात की पुष्टि होती है कि वर्ण- व्यवस्था का आधार जन्म को न मानकर गुण व धर्म को माना गया। मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् अपने कर्मों के आधार पर उत्कर्ष या अपकर्ष को प्राप्त करता है अर्थात कर्मों के आधार पर ब्राह्मण-शूद्र और शूद्र-ब्राह्मण, बन सकता था। अतः वर्ण व्यवस्था का उद्देश्य सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए और प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता के अनुसार उसका कार्य निर्धारित करते हुए उसे कर्त्तव्य पालन के लिए प्रेरित करना था।
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