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डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के विचार और संसदीय लोकतंत्र
राकेश कुमार
Page No. : 90-94
ABSTRACT
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने जनतंत्र को अपनाया है, जो कि उच्चतम सिद्धान्तों, मूल्यों और आदर्शों पर आधारित है। भारतीय संविधान निर्माताआंे को भारतीय परिस्थिति के अनुकूल संसदीय शासन पद्धति ही उपयुक्त लगी, क्योंकि इसमें शासन जनता के प्रति प्रत्यक्ष् रूप से जवाबदार होता है, इसलिए संसदीय शासन का स्वीकार संविधान कर्त्ताओं ने किया। डॉ. अंबेडकर की संसदीय लोकशाही पर काफी निष्ठा थी। हुकुमशाही के वे विरोधक थे, परन्तु साथ ही उन्हें संशय था कि जाति-व्यवस्था, जाति-निष्ठ, राजनीति के कारण, इंग्लैण्ड में संसदीय लोकतंत्र जिस प्रकार सफल हुआ क्या भारत में हो पाएगा? क्योंकि भारत में जिस तरह की जाति-व्यवस्था है, वैसी इंग्लैण्ड में भी नहीं है और जातीयता के आधार पर राजनीति यदि शुरू हुई तो संसदीय शासन बिखरने में समय नहीं लगेगा। बहुसंख्य जाति द्वारा अल्पसंख्य जाति के लोगों पर अत्याचार, जुल्म न हो, इसका भय भी डॉ. आंबेडकर को था, इसलिए संसदीय शासन का आग्रह उन्होंने 1942 में किया था। वहीं 1947 में उन्होंने प्रतिपादन किया कि, भारत के लिए संसदीय शासन की अपेक्षा असंसदीय शास्त्र अधिक योग्य है, परन्तु संविधानकर्त्ताओं द्वारा विचार-विमर्श के बाद संसदीय शासन पद्धति को ही स्वीकार किया गया।
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