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गंगा प्रसाद विमल के उपन्यासों में स्वातंत्र्योत्तर युग का यथार्थ
डॉ॰ मोनू सिंह
Page No. : 210-217
ABSTRACT
गंगा प्रसाद विमल स्वातंत्र्योत्तर युग के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। विमल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने गद्य-पद्य दोनों ही विधाओं में सृजनात्मक साहित्य की रचना कर अपनी मौलिक सूझ-बूझ एवं संवेदनशील होने का परिचय दिया। उनका रचना संसार बहुत ही व्यापक है। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, निबन्ध, समीक्षा आदि विधाओं में साधिकार लेखन किया। वे एक उच्चकोटि के अनुवादक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे कई महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर भी आसीन रहे तथा उन पदों पर अपने उत्तरदायित्वों का गरिमापूर्ण और सफल निवर्हन किया। उनके मौलिक रूप से छः काव्य संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘विजप’, ‘बोद्धिवृक्ष’, ‘इतना कुछ’, ‘सन्नाटे से मुठभेड़’, ‘मैं वहाँ हूँ’ और ‘बरगद’ हैं। उनके अद्यतन आठ कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘कोई शुरूआत’, ‘अतीत में कुछ’, ‘इधर-उधर’, ‘बाहर न भीतर’, ‘चर्चित कहानियाँ’, ‘मेरी कहानियाँ’ और ‘इंतजार में घटना’ आदि प्रमुख हैं। डॉ॰ विमल के अब तक पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘अपने से अलग’, ‘कहीं कुछ और’, ‘मरीचिका’, ‘मृगान्तक’ और ‘मानुषखोर’ हैं। यह शोध-पत्र उनके उपन्यासों पर ही केन्द्रित है।
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