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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि की प्रासंगिकता और भारतीय सुरक्षा चुनौतियाँ

बृजेश सिंह
Page No. : 79-88

ABSTRACT

हथियारों के विकास की अन्तिम परिणति 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अविश्कृत परमाणु बम के रूप में दृष्टिगोचर हुई, जब अमेरिका ने जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी पर प्रथम बार इसका प्रहार किया। इस महाविनाशक शक्ति को प्राप्त करने हेतु तत्कालीन महाशक्ति सं0रा0 अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य “आर्म्सरेस” प्रारम्भ हो गयी। देखते-देखते विश्व मे नाभिकीय अस्त्रों के विशाल भण्डार एकत्रित हो गये। आज विश्व के अनेक देशों के अस्त्रागारों मे इन संहारक आयुधों का इतना विशाल भण्डार एकत्र है कि उससे अनेक नाभिकीय युद्ध लड़े जा सकते हैं। नाभिकीय राष्ट्र आज भी इन आयुधों के परीक्षण मे लगे हुए हैं, साथ ही परमाणु विहीन राष्ट्र इसे किसी भी दशा में प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसी स्थिति मे आवश्यक है कि नाभिकीय अस्त्रों के निर्माण एवं उत्पादन पर अविलम्ब रोक लगाना मनुष्य तथा प्राणिमात्र के हित में है। आणविक शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा के बावजूद परमाणु हथियारों के निर्माण व परीक्षणों पर द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अनेक प्रयास भी हुए। इस दृष्टि से महाशक्तियों द्वारा परपाणु अप्रसार सन्धि ;छण्च्ण्ज्ण्द्ध तथा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि ;ब्ण्ज्ण्ठण्ज्ण्द्ध विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत ने सी0टी0बी0टी0 को एक ऐसी सन्धि के रूप में स्थापित करने पर बल दिया, जो सभी परमाणु परीक्षणों पर मजबूती से प्रतिबन्ध लगा सके, जिससे परमाणु शक्ति सम्पन्न देश भी अपने स्थलों तथा प्रयोगशालाओं मे परमाणु हथियारों को परिष्कृत और विकसित न कर सके, अन्यथा यह सन्धि मात्र परमाणु हथियार परीक्षण प्रतिबंध सन्धि बन कर रह जायेगी। भारत का मूल उद्देश्य आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक एवं प्रद्यौगिकी विकास शांतिपूर्ण एवं प्रजातान्त्रिक ढाँचे मे रहते हुए करना है। इसके लिए आवश्यक है कि क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण शांतिपूर्ण हो क्योंकि शांति व स्थायित्व के अभाव मे यह प्रभावित हो सकती है। भारत का प्रयास यह होगा कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विश्व की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को सहयोग प्रदान करते हुए एक सकारात्मक भूमिका से न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण एवं समान वैश्विक व्यवस्था बने।


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