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गोदान के स्त्री पात्र
सुमन देवी
Page No. : 139-144
ABSTRACT
’गोदान’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित एक ऐसा उपन्यास है, जिसे अगर ’महाकाव्य’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह उपन्यास यथार्थवाद और मनोविश्लेषण वाद का ऐसा संगम है कि जब हम इसे पढ़ते हैं, तब हम स्वयं को भूलकर पात्रों से इस तरह जुड़ जाते हैं कि उनके सुख-दुख हमारे सुख-दुख बन जाते हैं। उपन्यास में कृषक जीवन की समस्याओं को मुख्य रूप से उभारा है, लेकिन उस समय स्त्री की स्थिति क्या रही होगी यह भी हमें उपन्यास से पता चलता है। यह उपन्यास बेशक किसान से मजदूर बने ’होरी’ पर आधारित हो लेकिन इसमें नायिका के रूप में उभरकर होरी की पत्नी ’धनिया’ ही आती है। वह हर परिस्थिति में जैसे व्यवहार करती है। वह गजब है। लेकिन प्रेमचंद ने स्त्री पात्रों को परिवार के प्रति तथा प्रेम के प्रति समर्पित दिखाया तथा परिवार में चाहे उसका जितना भी शोषण हो रहा हो, वह सब सह रही है। शायद उस समय की परिस्थितियाँ ऐसी रही होगी, जिस कारण उसमें दमित होकर जीना ही स्त्री की व्यवस्था रही होगी। लेकिन यहाँ प्रेमचंद ने आगे बढ़ते हुए भारतीय समाज में जो-जो बुराईयाँ, रूढ़ियाँ और परंपराएँ थी कि जिस कारण से स्त्री का शोषण और दमन हो रहा था, उसे इंगित करते हुए वे यह कहना चाहते हैं कि इनके खिलाफ स्त्री स्वंय संघर्ष करें और अपने अस्तित्व के प्रति स्वंय सचेत हो। तथा प्रेमचंद ने एक आशा की ओर बढ़ते हुए स्त्री पात्रों को गढ़ा है। कथानक में कहानी स्त्री पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है तथा स्त्री यहाँ सशक्त रूप से उभर कर आती है।
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