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डॉ० जय भगवान सिंगला प्रणीत ‘प्रणम्य को प्रणाम’ जीवनी में प्रयुक्त लोकोक्ति एवं मुहावरों का मनोभाषिकीय अध्ययन
डॉ० रमेश कुमार
Page No. : 78-98
ABSTRACT
’प्रणम्य को प्रणाम’’ जीवनी में लेखक डॉ० जयभगवान सिंगला ने अपने पिता श्री लाला रामस्वरूप सिंगला के जीवन के वृत्तांतों एवं विविध घटनाओं को पाठकों के समक्ष जिस ढंग से और जिस भाषा में रखा है उसमें लाला जी के चरित्र और उनके अनुभव की सत्यता प्रत्यक्ष हो हुई है| इसमें वस्तुपरकता एवं भावात्मकता का समन्वय भी है। यह जीवनी डॉ० जयभगवान सिंगला द्वारा अपने पिता के जीवन की सच्ची समालेचना भी है। इसका प्रत्येक भाग लाला जी के जीवन की जिजीविषा और उनके क्रियाकलापों से संबंधित है। जीवनीकार ने इसमें उनके जीवन की विविध घटनाओं एवं विविध पहलुओं को, जिसे उन्होंने बहुत सूक्ष्मता से देखा भी था और भोगा भी था का सही एवं सटीक शब्दों में चित्रण किया है। इसके लेखक ने उनके जीवन के अनुभवों को सर्वाधिक महत्त्व देते हुए उनकी स्मृतियों को पुनर्जीवित करने का स्तुत्य एवं सफलतम प्रयास किया है। सफल जीवनी की विशिष्टता है असामान्य एवं महापुरुष तुल्य लाला रामस्वरूप सिंगला जी के असामान्य अनुभवों को पाठकों के समक्ष रखना। क्योंकि लेखक डॉ० जयभवान सिंगला उनके सुपुत्र हैं, इसलिए इस जीवनी में वर्णित सभी घटनाओं की सत्यता पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जा सकता। घटनाओं का सीधा संबंध दोनों से है, इसलिए यह जीवनी गुणवत्ता की दृष्टि से हिन्दी साहित्य की जीवनी विद्या को समृद्ध करेगी। लेखक ने अपने पिताजी के व्यक्तित्व एवं चारित्रिक गुणों से पाठक को अवगत ही नहीं कराया है वरन् इन्होंने अपने पिता की भाषायी कुशलता का भी परिचय कराया है। लेखक ने अपने पिता के जीवन के भोगे हुए अनुभवों से निकली कहावतों, मुहावरों एवं लोकोक्तियों से उनके दानवीर, दयावीर, कर्मवीर, प्रखर बुद्धि क्षमता, भाग्यशाली, तेजस्वी,अदम्य साहस, अद्भुत संघर्ष शक्ति, अद्भुत दूरदृष्टा, साफगोई, जिंदादिली के धनी, स्वाभिमानी, विशाल हृदय के स्वामी, प्रगतिशील विचारों के धनी स्वरूप का चित्र खींचा है। उनका अभिव्यक्ति कौशल उनके जीवन के अनुभवों का प्रतिधित्व है। उनके द्वारा समय-समय एवं प्रसंगानुसार कहे मुहावरे एवं लोकोक्ति उनके व्यक्तित्व को और अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है। इनके प्रयोग से उनका वांछित अर्थ प्रभावी एवं सरलता से अद्भुत सौंदर्य के साथ संप्रेषित होता है| उनकी भाषा लोकशक्ति के प्राणों से जीवंत उठी है।
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