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नरेश मेहता के काव्य-सिद्धांत
डॉ॰ रमेश कुमार
Page No. : 101-110
ABSTRACT
हिन्दी साहित्य के प्रयोगधर्मी रचनाकार नरेष मेहता दूसरा सप्तक के प्रमुख कवि हैं। इनके काव्य में परम्परा और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय है जो छायावादोत्तर काल मंे कवि की अलग विषिष्ट पहचान बना देता है। ‘दूसरा सप्तक’ के कवि होने के कारण दीर्घ समय तक उनकी गणना प्रयोगवादी कवि के रूप में की जाती रही है, किन्तु जो लोग उनके चिन्तन, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि एवं उनके काव्य-विकास के विविध सोपानों से निकटता से परिचित हैं, वे सहज ही लक्ष कर सकते हैं कि वे एक ओर जहाँ सप्तक परम्परा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं वहीं दूसरी ओर नई मनःस्थिति एवं नए भावबोध का नूतन षिल्पविधान में सृजन कर अपनी ऊर्ध्वमुखी काव्य प्रतिभा का परिचय दे रहे हैं। कवि ने अपने परिवर्तित युग संदर्भों से जुड़ना चाहा, इसलिए उन्होंने प्रयोगषील दृष्टि को अपनाया। कवि ने समकालीन जीवन की विवषता, संषय, बेचैनी और अमानवीय भयावहता की बेबाक अभिव्यक्ति की है।
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