मानव के सदाचार की शीतवायुपाकरही धर्म का दिव्यजलआकाश से पृथ्वीतलतकआयाकरताहै। यह धर्मबहुतहीसूक्ष्म, नित्य, व्यापकतथादेशकालमेंसर्वत्र विद्यमानमहानीय भावहै।इसी की पूर्णतमसशक्तअभिव्यक्तिमानव का अध्यात्म जीवन, नैतिक जीवन औरसदाचारपरप्रतिष्ठितसांस्कृतिक जीवन है।प्रत्येकआचार्य, सिद्ध, ज्ञानी, ऋषि, बुद्ध, महात्मा, तीर्थकर, महामानवइसीनित्य धर्म-तत्त्वको जीवन मेंप्रत्यक्ष अनुभूतकरताहैऔरउसका धर्ममय जीवन हीपथप्रदीपबनताहै। शुद्ध धर्मतत्त्वसम्प्रदायों की क्षुद्रसीमाओंमेंकैदनहींहोता, वहतो उन सब मेंअभिव्यक्तरहताहै।जिसप्रकारआकाशचारीमेघों का अमृत जल पृथ्वी के स्वच्छसरोवरोंमेंसंचितहोजाताहै, उसीप्रकार धर्मतत्त्व के भावमानवमनमेंपहलेअप्रत्यक्ष रूपमेंआतेहैंऔरउसी शक्ति से भौतिक जीवन मेंअवतीर्णहोतेहैं।किसी मत अथवापंथ का अनुयायीबनने-मात्र से व्यक्ति का कल्याणनहींहोसकता।वह एकांगीगतिहै।मन, वचनऔरकर्ममेंसत्य की एक साथगतिसर्वांगीणगतिहै।वहीसत्य हैजो ‘त्रिसत्य‘ हो, अर्थात् जोमन का सत्य है, वही वाणी का सत्य होऔरजो मनवाणी का सत्य हैवहीकर्म का भीसत्य हो। इस प्रकार का सत्य या धर्मविश्व का सच्चाआलोकहै।वहविश्वमानव के जीवन का चमकीलाप्रकाशहै।इसी ‘त्रिसत्य‘ को जीवन मेंअपनातेहुए डॉ. ज्ञान सिंह मान ने अपनेसाहित्य की रचना की है।उन्होंनेअपनेसाहित्य में धर्म के इस सच्चे रूपकोअपनातेहुए, धार्मिक-मूल्योंकोअपनेसाहित्य और जीवन मेंअपनाया।ज्ञान सिंह मान ने जहाँ धार्मिक-मूल्योंमेंकर्म के महत्त्व, धार्मिक, सद्भाव, धार्मिकउपादेयताकोअपनाया, वहींउन्होंनेबाह्यचारों, आडम्बरों, पाखण्डों, अंधविश्वासोंतथामूर्ति-पूजाआदि का विरोध भीकियाहैताकिमानवकोसच्चे धर्म के रास्तेपरचलायाजासके।
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