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भारतीय दर्शन की विश्व समाजशास्त्र को देन

रेनू पत्नी श्री संदीप
Page No. : 37-40

ABSTRACT

समाज और सामाजिक संगठन का गंभीरता से चाहना हो तो भारतीय दर्शनशास्त्र  को जानना जरूरी है। एक जगह तुलसी ने रामचरितमानस में लिखा हैः- जो एक सेतु का काम करेगा।
’’अति अपार जे सरित बर जौं नृप् सेतु कराहि।
च्हि पिपीलिकड़ परम लजु श्रम पाराहि जाहि।।
जो अत्यंत बड़ी श्रेष्ठ नदियाँ है। यदि राजा ऊपर पुल या बाँध बनाता है तो अंव्यत छोटी चीटियाँ हुई उन पर बिना श्रम के बाहर चली जाती है। इस संदर्भ में अर्थ है कि समाज को इसका गठन एक श्रेष्ठ नदी है। जिस भारतीय मुनियों विचारकों श्रेष्ठजनों ने शास्त्रीयों के द्वारा पुल तैयार किया है जिनको आत्मसात कर कोई भी भारतीय दर्शन और सामाजिक संगठन को जान और समझ सकता है।   


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