वैदिक साहित्य में पर्यावरण विवेचन
जयविन्द्र
Page No. : 35-36
ABSTRACT
उत्पत्ति काल से ही पर्यावरण-संरक्षण का प्रादुर्भाव हुआ। मानव द्वारा सर्वप्रथम श्वास लेकर छोड़ते तथा मलमूत्र एवं पसीने का त्याग करते ही प्रदूषण आरम्भ हुआ । प्रदूषण की अवधारणा आज की हो सकती है किन्तु इसकी स्थिति प्रकृति के आदि गर्भ से है।1 सभ्यता के अनुसार प्रदूषणों के रूप परिवर्तित होते रहे हैं। आदि-मानव द्वारा भोजन तथा आवास आदि की व्यवस्था के साथ अन्न, जल, लकड़ी आदि का उपयोग करने से प्रकृति में असंतुलन एवं दोष बढ़ना शुरू हुआ । प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए ऋषियों ने हमें अवगत किया है ।
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