भारतीय लेखन परम्परा के अनुसार प्रेमचंद ने अपने कथा-साहित्य में अक्सर अच्छाई की विजय चित्रित की है। पश्चिमी ट्रेजडी को उन्होंने बहुत कम ही स्वीकार किया है। वैसे भी भारतीय काव्यशास्त्र में यह मान्यता है कि- नायक ही फल का भोक्ता होता है। चाहे जीवन में उसे कितना भी संघर्ष क्यों न करना पड़े। अंततः वही विजयी होता है। उदाहरणस्वरूप-शंकुतला, राजा हरिश्चन्द्र, श्रीराम, ‟ष्ण सभी भारतीय चरित्र अनगिनत कष्ट भोगकर भी अंततः सफलता प्राप्त करते हैं। भारतीय कथा साहित्य का मूल आधार भी यही है किन्तु आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संकट का परि२श्य हो, तब ऐसी चारित्रिक सफलता खोखली लगने लगती है और उतना आत्मिक संतोष नहीं देती। संभवतः इसीलिए जहाँ-जहाँ प्रेमचंद ने भाववादी भारतीय आदर्श की कल्पना की है, वहाँ वे भौतिक जगत की वास्तविक समस्या से दूर हो गये हैं। लेकिन उनके वस्तुगत आदर्श राष्ट्रीय-सामाजिक जीवन की प्रगतिशील चेतना पर आधारित है।
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