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आधुनिक हिन्दी नाटकों के विकास में जगदीश चन्द्र माथुर का यथार्थ बोध के सन्दर्भ में

सविता रानी
Page No. : 45-48

ABSTRACT

नाटककार के रूप में विख्यात जगदीशचन्द्र माथुर जी ने अपनी विशिष्ट शैली में चरित लेख, ललित निबन्ध और नाट्य-निबन्ध भी लिखे हैं । लेखन कार्य में उनकी इतनी रुचि थी कि जिन विभागों में उन्होंने काम किया उनकी समस्याओं के सम्बन्ध में भी बराबर लिखा । परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही ‘एआईआर’ का नामकरण आकाशवाणी किया था। उनकी आरम्भिक रचनाएँ उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं चाँद, भारत, माधुरी, सरस्वती और रूपाभ में छपती थीं । अपने विचारों और मूल्यों में श्री माथुर ग्रामीण और नागर, लोक और शास्त्रीय संस्कारों व परम्पराओं के समन्वय के पक्षधर थे । इस पक्षधरता का स्वर उनके साहित्य में पूर्णतः मुखर है । उन्होंने अपनी रचनाओं की प्रकृति, रचना-प्रक्रिया और अपने विचारों एवं विश्वासों के बारे में पुस्तकों की भूमिकाओं में बहुत-कुछ लिखा है, जो उनके साहित्य को  समझने में सहायक है ,हिन्दी के साहित्यकारों में जगदीशचंद्र माथुर एक प्रयोगधर्मी नाटककार रहे हैं जिन्होंने आकाशवाणी में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रियता के विकास के साथ एक नई दिशा की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही रेडियों में लेकर आए थे।


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