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माधव कौशिक की गजलों में जनोन्मुखी विमर्श

अनीता रानी
Page No. : 51-58

ABSTRACT

माधव कौशिक जन साहित्यकार हैं। वे समाज, संस्कृति व परिवेश से जुड़े हुए हैं। उनके समग्र साहित्य में जनमानस के प्रति उनकी निष्ठा सर्वत्र व्याप्त है। वे समाज के विभिन्न पहलुओं का वर्णन ही नहीं करते अपितु समस्याओं के प्रति साहित्यकार की जिम्मेदारी स्वीकार करके उसका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। माधव कौशिक सामान्य जन के प्रति भी उत्तरदायी हैं। वे प्रत्येक समस्या पर अपना दृष्टिकोण रखते हैं। जनकल्याण के लिए सर्वजन को प्रेरित करने का भी वे कार्य करते हैं। माधव जी अपने कर्त्तव्य में लगातार रत हैं। समाज परिवर्तन का दुसाध्य कार्य करने के लिए वे लगातार संघर्षरत हैं। वे लोगों का सहयोग इसके लिए चाहते हैं परन्तु अगर सहयोग न मिले तो भी कोई बात नहीं है। वे चाहते हैं कि आम लोग सहयोग न सही, कम से कम प्रोत्साहन तो उन्हें जरूर दें ताकि वे अपने कर्त्तव्य पर डटे रहें - 
गर दे सके तो मेरी हिम्मत की दाद दे
पलकों से पत्थरों की शिला काट रहा हूँ।1
संक्षिप्त में माधव जी सर्वजन के प्रति निष्ठा रखने वाले कलाकार हैं और वे काफी हद तक इसमें सफल भी रहे हैं। माधव जी का जीवन सामान्य रहा। उन्होंने घर-परिवार की जिम्मेदारियों का पूर्णतः निर्वाह तो किया ही है साथ-साथ अपने सामाजिक दायित्वों से भी मुँह नहीं फेरा है। वे परिस्थितियों के समक्ष भागने वाले लोगों में नहीं हैं अपितु डटकर सामना करने वाले हैं -
घर-बार छोड़कर भागा नहीं तो क्या
मैं भी किसी फकीर से कम नहीं रहा।2


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