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इक्कीसवीं सदी की कहानियां: धार्मिक आयाम

नरेन्द्र कुमार
Page No. : 38-50

ABSTRACT

धर्म मनुष्य को मानसिक और अध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। धर्म मनुष्य के विकास में सहायक होता है। भारत में धर्म, धार्मिक क्षेत्र के साथ-साथ राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धर्म आस्था के साथ-साथ अंधविश्वास के रूप में भी जीवन का अंग है। लोग भय के कारण छल-कपट, बाह्य आडम्बर, शोषण का शिकार हो जाते हैं। धर्म जब अपना मूल्य खोने लगता है तो धार्मिक जीवन में कई समस्याएँ उत्पन्न्ा कर देता है। इक्कीसवीं सदी की कहानियों में अंधश्रद्धा, आस्था, रूढ़िवादिता और धार्मिक शोषण प्रमुख विषय रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में धार्मिक चेतना व्यक्ति के साथ-साथ समाज में ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।आज आधुनिक एवं प्रगतिशील दौर में धर्म के उदात्त पहलू संकीर्णता से मुक्त नहीं हो पाए हैं। वह धर्म का पिछड़ापन है जो उसे उठने नहीं देता। धर्म का निरंतर संकीर्ण होता दायरा मनुष्य के विकास में बाधक बन रहा है। भारतीय समाज धर्म और आध्यात्मिक संस्कृति की पहचान रहा है। धर्म हमारे विश्वास की पहली सीढ़ी एवं मूलाधार। जहाँ धर्म का संबंध आत्मिक तथा आध्यात्मिक उन्न्ाति से होता है, वहीं संस्कृति का संबंध हमारे विचारों एवं धारणाओं से होता है। धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेता, साधु धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं। अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण साम्प्रदायिकता को बढ़ा रहे हैं। भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है ओर यहाँ के नागरिकांे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन जब किसी धर्म के नाम पर होने वाले आडम्बरों पर प्रहार किया जाता है तो धर्म के ठेकेदार उसे अस्वीकार कर देते हैं। इक्कीसवीं सदी के कहानीकार धार्मिक भेदभाव मिटाकर साम्प्रदायिक चेतना लाना चाहते हैं।


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