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मिथकीय चेतना के सन्दर्भ में नरेश मेहता के कथा साहित्य का अनुशीलन

राकेश कुमार त्रिपाठी
Page No. : 17-28

ABSTRACT

अधिकांश उपन्यास में स्थिति को आधार बनाकर साहित्य की रचना की गयी है। नरेश मेहता के उपन्यासों के समाज की स्थितियों का द्वन्द इनके उपन्यासों में अनेक स्थलों पर देखा जा सकता है। ‘डूबते मस्तूल’ में उन्होंने आज के मध्यमवर्गीय समाज में नारी की स्थिति को दर्शाया है, तो दूसरे उपन्यास ‘यह पथ बन्धु था’ में स्वतन्त्रता पूर्व की राजनीतिक, सामाजिक घटनाओं का चित्रण एक सामान्य व्यक्ति के माध्यम से हुआ है। इसी श्रृंखला में इनके अगले उपन्यास ‘धूमकेतुः एक श्रुति’ में एक बालक की स्मृतियों का वर्णन है। धूमकेतु एक श्रुति की अगली कड़ी नदी यशस्वी है। जिसमें बालक से युवा हुए उदयन की स्थिति बडे़ ही मनोवैज्ञानिक ढंग से दर्शायी गयी है। ‘दो एकान्त’ के अन्तर्गत आज के सामाज के तनावपूर्ण दाम्पत्य को मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है। इसी तरह ‘प्रथम  फाल्गुन’ में स्त्री-पुरूष के प्रणय-सम्बन्धों को बाहरी परिस्थितियां किस तरह प्रभावित करती हैं उन्हें  बड़े ही भावनात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। उत्तर कथा नरेश मेहता का सर्वाधिक बृहत उपन्यास है, जिसका प्रस्तुतीकरण दो खण्डों में किया गया है, इसके अन्तर्गत इन्होंने साधारण जनों के जीवन के उतार-चढ़ाव का वर्णन किया है, इसमें उस काल की राजनीतिक, सामाजिक सभी स्थितियों का निरूपण किया है।


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