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समकालीन हिन्दी कविता में दलित विमर्श: आर्थिक पक्ष

सुनीता देवी, प्रो. उषस पी.एस.
Page No. : 12-21

ABSTRACT

समय चाहे कोई भी रहा हो अर्थ की आवश्यकता हर किसी को बराबर रही है। इतना अवश्य है कि पहले अर्थ को लेकर लड़ाई-झगड़े कम हुआ करते थे, लेकिन आज ये लड़ाई-झगड़े परिवार विघटन तक आ पहुँचा है। पैसे को लेकर नैतिक मूल्य कुछ समाप्त से होते नजर आ रहे हैं। आज जीवन का आधार केवल और केवल अर्थ बनकर रह गया है।


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