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बौद्धकालीन शिक्षा उद्देश्य, आदर्श एवंविशेषताएँ

मंजू कुमारी, डॉ॰ ज्ञानेंद्र त्रिपाठी
Page No. : 17-22

ABSTRACT

शिक्षा  का  दर्शन  एवंधर्म  से  घनिष्ठसम्बन्धहै।भारतीय  शिक्षा प्राचीनकाल से हीदार्शनिक एवंधार्मिकसिद्धान्तों से जुड़ीरहीहै।संसार की परिस्थितियोंमेंपरिवर्तन के फलस्वरूपदार्शनिकविचारधाराओंमेंपरिवर्तनहोतारहताहैऔरतद्नुसारशिक्षा व्यवस्थाभीपरिवर्तितहोतीरहतीहै।सत्य तो यह हैकिदर्शन का  व्यावहारिकरूपशिक्षा  हैऔरशिक्षा  का  सैद्धान्तिक  रूपदर्शन।वहदर्शन, दर्शननहींहैजिसकाशिक्षा परप्रभाव न होऔरवहशिक्षा, शिक्षा नहींहै, जिसकीदार्शनिकपृष्ठभूमि न हो।वास्तविकदर्शनवहहैजिसमंे युवकोंको जीवन के प्रतिउचितदृष्टिकोणकोअपनानेहेतुप्रेरितकरनेऔरसम्पूर्णसमाजकोशिक्षा के उचितविचारोंकोग्रहणकरानेकीशक्तिहोतीहै।बौद्ध दर्शनआजकलसंसार के महनीय दर्शनोंमें मुख्य है।ईसाईमतावलंबियोंकी  संख्या  अधिकबतलाईजातीहै,  परन्तुउनमेंइतनीपारस्परिकविभिन्नताहैकिसबको एक ही धर्म के अंतर्गतमाननान्यायसंगतनहींहै।परन्तुबौद्धधर्ममें ऐसीबातनहींहै। यह  एक  ऐसा  धर्महैजिसनेहिन्दू  धर्मकोध्वस्तकरदेनेमेंसपफलताप्राप्तकीऔरलगभगदोसौवर्षोंतकभारत  का राजकीय  धर्मबनारहा।ईसाईतथाइस्लामधर्मजैसेप्रचारक धर्मों  ने  भीसंसारमेंइतनी  शीघ्रसपफलतानहींपायीजितनीबौद्धधर्मकोमिली।बौद्धने मनुष्यों की इच्छापूर्ति के लिए अपने धर्म का प्रचारनहींकिया।उन्होंने न तोस्वर्ग का दरवाजाहीजनता के लिए मुपफ्तमें खोलाऔर न हीमोक्षप्राप्ति का लोभहीजनताकोदिया।बौद्धधर्म का त्रिरत्न (1) बौद्ध (2) संघतथा (3)धर्मथा।बौद्ध का व्यक्तित्व एक ऐसीवस्तुथीजिसनेसंसार के  लोगोंकोअनायासहीआकृष्ट  किया।बौद्ध  का  व्यक्तित्वसचमुचमहान्,  अलौकिकऔरदिव्य  था।अपूर्वत्यागबौद्ध  के जीवन का महान् गुणथा।


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