भारत की राष्ट्रीय चेतनारू एक विवेचना
रचना, डॉ.रमेश शर्मा
Page No. : 10-12
ABSTRACT
राष्ट्रीय चेतना का अभिप्राय(समाज की उन्नति) राष्ट्र की चेतना-प्राण शक्तिसमाज से है।राष्ट्र शब्दसमाज के अर्थमेंहीप्रयुक्तहोताहै।जिस क्षणसमुदाय में एकता की एक सहजलहरहो,उसेराष्ट्र कहतेहैं।समाजऔरसाहित्य का भीविरोध संबंध है।साहित्य सामुदायिकविकासमेंसहायकहोताहै, सामुयिकभावनाभीराष्ट्रीय चेतना का अंग है।राष्ट्र के विकास के लिए भौतिकऔरआध्यात्मिकचेतना का होनाआवश्यक है।भौतिकवादविकास के अंतर्गतराष्ट्र का सबंध आर्थिक,वैज्ञानिक,नैतिक,राजनीतिक, शैक्षणिक रूप से तथासैन्य बल से विकसितहोनाअतिआवश्यक है।आध्यात्मिकचेतना के अंग-आत्मिक, मानसिक,बौद्धिक,नैतिकतत्वहैं।राष्ट्रोन्नति का उत्तरदायित्वकिसी एक विशेष का नहीं,और न हीसरकार का है।प्रत्येकव्यक्ति का व्यक्तित्वसामूहिक रूप से उत्तरदायीहै,परन्तुकुछव्यक्तियोंपरजोसरकार के उच्चपदाधिकारीहैं,उन परराष्टोन्नति का सीधा उत्तरदायित्वहै, किन्तुहरव्यक्तिवह चाहे जिसस्थितिमेंहो,अपनेकर्तव्यों केपालन द्वाराराष्ट्र के भौतिकऔरनैतिकउत्थानमें योगदान दे सकताहै।चिकित्सा के क्षेत्र मेंउचितऔरसुरक्षितचिकित्साप्रणालीकोलागूकरनाचाहिए ताकि,एक स्वस्थसमाज की स्थापनाहोसके।भारत की आयुर्वेद की पद्धतिकोसुचारू रूप से बढ़ावामिलनाचाहिए।राष्ट्र की चेतना का आधार योगऔरआध्यात्मभीहै। योगऔरआध्यात्म की शिक्षा का विश्वस्तरपरप्रचार-प्रसारहोने से भीराष्ट्र की चेतनाको बल मिलेगा।राष्ट्र का विकासवहां के स्वस्थनागरिकोंतथापर्यावरणपरभीआधारितहै।
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