नौकरी पेशा नारियों की भी अलग समस्याएँ हैं। कार्यस्थल पर होने वाला शारीरिक शोषण, घर की समस्याएँ आदि एक साथ उसे संभालनी है। पारिवारिक दायित्व ढोने के लिए पुत्री को विवश करने वाले अनेक माता-पिताएँ हैं। लेकिन उसकी कमाई को अपनी इच्छानुसार खर्च करने की स्वतंत्रता भी नहीं दी जाती। मध्यवर्गीय कामकाजी नारियों की ऐसी स्थिति है, वह चक्की के दो पाटों के बीच जैसे पिसती जा रही है। एक ओर मेहनत करके पैसा कमाकर परिवार संभालना है तो कभी दफ्तर के पुरुषों की बुरी नजर का उन्हें सामना करना पड़ता है।
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