इक्कीसवीं सदी की कहानियां: राजनीतिक आयाम
नरेन्द्र कुमार
Page No. : 38-50
ABSTRACT
वर्तमान युग लोकतंत्र का युग है। लोकतंत्र के कारण राजनीतिक जीवन का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा लागू नियम हमें प्रभावित करते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए राजनीति का ज्ञान आवश्यक हो गया है ताकि प्रत्येक व्यक्ति राज्य में अपनी स्थिति को समझ सके और अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का उचित निर्वाह कर सके। समाज में इस व्यवस्था की पूर्णता राजनीतिक चेतना के कारण ही संभव होती है। ‘राजनीति’ शब्द वस्तुतः अंग्रेजी शब्द ‘पोलिटिक्स’ का हिन्दी अनुवाद है। यह ‘पोलिटिक्स’ शब्द भी यूनानी के ‘पोलिस’ शब्द में व्युत्पन्न्ा है जिसका अर्थ ‘नगर और समुदाय’ है। ‘राजनीति’ से तात्पर्य उस शास्त्र से है जो राज्य संचवालन संबंधी नीतियों का अध्ययन प्रस्तुत करता है। आजादी से पूर्व भारतवासियों में राजनीतिक चेतना का अभाव था। उन्हें राजनीतिक कार्यों में भाग लेने से वंचित कर दिया गया। इसी राजनीति असंतोष ने लोगों में राजनीतिक चेतना को बल दिया। ‘’1875 की क्रांति ने भारतीयों में एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना का जागरण कर दिया था। यह चेतना उत्तरोत्तर बलवती होती गई और सामाजिक धार्मिक सुधारों में नियोजित हो गयी।‘’1 इस प्रकार राजनीतिक परिवर्तनों के कारण राजनीतिक चेतना बलवती होती गई। भारत के परिवर्तित राजनीतिक परिप्रेक्ष्य ने जनतांत्रिक चेतना को प्रकट किया है। राज्य सत्ता के क्रूर रवैये के कारण समाजवादी सिद्धान्त की व्यवस्था पर जोर दिया गया है। जिसकी स्थापना के लिए समाज और राजनीति के अविच्छिन्न्ा संबंध हैं। यह अविच्छिन्न्ा संबंध जिसकी उपेक्षा कोई भी साहित्यकार नहीं कर सकता। राजनीतिक जीवन, सामाजिक जीवन से अलग नहीं हो सकता। लेखक अपनी अनुभूतियों के दायरे में समाज के राजनीतिक पहलुओं की कल्पा करता है। अपनी अभिव्यक्ति के द्वारा समाज पर राजनीति के अमिट प्रभाव को स्पष्ट करता है। आज की राजनीति का एक घिनौना पक्ष है सत्ता, शक्ति और लूट। इसी कारण आज लोग राजनीति को गलत मानते हैं। इसका परिणाम है कि सारा परिवेश असंतोष और भय से आक्रांत हो रहा है।
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