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हिन्दीसाहित्यएवंसमकालीनहिन्दीकवितामेंदलितविमर्श

सुनीता देवी, प्रो. उषसपी.एस.
Page No. : 8-16

ABSTRACT

वर्तमान समय मेंदलितविमर्श का किसीभीभाषा के साहित्य मेंबोलबालाहै।आजदलितविमर्श एक विवेचन या विश्लेषणनहींबल्किआवश्यकता बन गयाहै। युगबदला, स्थितिबदली, चेहरेबदलेपरदलितसमाज का शोषणवहीं का वहींरहा। समय के साथ-साथसिर्फतरीकेबदलेपरिस्थितियांनहींबदलीं।आज का युगविषमता, विसंवादिता, क्षुब्धताऔरविछिन्नता का युगहै।समाज की संकीर्णमनोवृत्ति, विषमपरिस्थिति, अन्याय, अत्याचार, मानव के प्रतिअंधश्रद्धा दमित, पीड़ित, शोषित, कुचलेहुए,, तिरस्कृत, मानव की पीड़ा, वेदना, यातना, भावना, अपेक्षा, अस्तित्वऔरअस्मिता की पहचानकरानेवाला, सामाजिकसंचेतनाकोअभिव्यक्तकरनेवालासाहित्य सहीमायनेमेंदलितविमर्शकहलाताहै।


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