संत रविदास जी ने अपनी साखियों और दोहों द्वारा सारे देश में भ्रमण करते हुए जीवन में विभिन्न्ा विषयों पर उपदेश दिया। वह तत्कालीन सभी संतों और उपदेशकों में क्रांतिकारी थे। लेकिन उनका स्वभाव विनम्र और सरल था। इसलिए मधुर रस से परिपूर्ण जितनी साखियाँ संत रविदासजी की मिलती है उतनी अन्य किसी संत की नहीं। क्रांतिकारी इसलिए कि उन्होंने डटकर उस समय में समाज में प्रचलित अंधविश्वास, पूर्तिपूजा और वर्ण-व्यवस्था का खण्डन किया था। जनसाधारण को धर्म का वास्तविक स्वरूप समझाया। उन्होंने अपने चारित्रिक बल से महती ख्याति अर्जित की और कबीर को भी उनकी शक्ति एवं साधना से प्रभावित होकर कहना पड़ा ‘साधन में तो रविदास संत है।‘ उनकी साखियाँ गुरुगं्रंथ साहिब में भी संकलित है। ‘आदिग्रन्थ‘ में निर्गुण विचारधारा के बुनियादी संकल्पों के ब्रह्म, जीव, माया, सृष्टि, नाम गुरु मन, सदाचार तथा समाज के आदि अध्यान को उभारा गया है।
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