हिन्दी काव्य में प्रगतिशील कविताओं पर रूसी साम्यवाद का प्रभाव परिलक्षित है। ये मानते हैं कि आर्थिक समानता आने से सामाजिक समानता अपने आप आ जायेगी। आज का दलित कवि ऐसे समझौते नहीं कर सकता, क्योंकि उनकी प्रतिबद्धता क्रांति के साथ है। विषमता को नष्ट करके समानता, स्वतंत्रता, प्रेम, भाईचारे से आपस में बंधे हुए समाज की नियति का वह सपना देख रहा है। महाड़ के मुक्ति-संग्राम से निकली चिंगारियों ने अब मानवीय देह धारण कर ली है।
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