मलयज ने तत्कालीन धार्मिक परिस्थितियों के प्रति गंभीर चिन्तन प्रदर्शित किया है। जहाँ लोगों की आस्था व विश्वास धर्म के प्रति कम व उदासीन था, वहाँ मलयज इस निराशावादी दृष्टिकोण के प्रभाव से दूर ही रहे। उनकी ईश्वर के प्रति आस्था दृढ़ रही है। परन्तु ऐसा नहीं है कि मलयज तत्कालीन-धार्मिक-दुर्व्यवस्था को व्याख्यायित करते हुए पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया हो। बल्कि उन्होंने निष्पक्ष रूप धर्म की निम्नावस्था को वर्णित किया है। मलयज का विश्वास अवतारवाद में भी है। उन्होंने अनेक धार्मिक-यात्राएँ की हैं और उनका वर्णन नकारात्मक व सकारात्मक दोनों दृष्टियों से किया है। वे मानते हैं कि यद्यपि वर्तमान समय में धर्म का स्तर गिर रहा है परन्तु पाश्चात्य संस्कृति विज्ञान से ऊब कर भारतीय-धर्म-साधना की ओर आकर्षित है।
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