हिन्दूदर्शनपरंपरार: एकविवेचना
Dr Mahipal
Page No. : 10-15
ABSTRACT
हिन्दूधर्ममेंदर्शनअत्यन्तप्राचीनपरम्परारहीहै।वैदिकदर्शनोंमें षड्दर्शन (छः दर्शन) अधिकप्रसिद्ध औरप्राचीनहैं।
वैदिकदर्शनोंमें षड्दर्शनअधिकप्रसिद्ध हैं। ये सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसाऔरवेदान्त के नाम से विदितहै। इनके प्रणेताकपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनिऔरबादरायण थे। इनके आरंभिकसंकेतउपनिषदोंमेंभीमिलतेहैं।प्रत्येकदर्शन का आधारग्रंथ एक दर्शनसूत्र है।’सूत्र’भारतीय दर्शन की एक अद्भुत शैलीहै।गिने-चुने शब्दोंमेंसिद्धांत के सार का संकेतसूत्रोंमेंरहताहै।संक्षिप्तहोने के कारणसूत्रोंपरविस्तृतभाष्य औरअनेकटीकाओं की रचनाहुई।भारतीय दर्शन की यह शैली स्वतंत्र दर्शनग्रंथों की पश्चिमी शैली से भिन्नहै।गुरु-शिष्य-परंपरा के अनुकूलदर्शन की शिक्षा औररचनाइसकाआधारहै। यह परंपरा षड्दर्शनों के बादनवीनदर्शनों के उदय मेंबाधकरही।व्याख्याओं के प्रसंगमेंकुछनवीनताऔरमतभेद के कारण मुख्य दर्शनोंमेंउपभेदअवश्य पैदाहोगए।
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