प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन
सचिन, डॉ. नवनीता भाटिया
Page No. : 7-9
ABSTRACT
यद्यपि स्वयं प्रेमचंद क्रान्तिकारी न थे, फिर भी वह क्रान्ति की भारतीय अवधारणा की खोज में थे। वह समाजवादी मानवता के पक्षधर भी थे। उनकी रचनाओं में सामाजिक न्याय की प्रस्तुति सर्वत्र है। उनके लेखन का एकमात्र उद्देश्य समन्वय और समतामूलक सिद्धान्त को प्रतिपादित करना था। उन्होंने समाज में व्याप्त समस्त समस्याओं‟व्यक्ति, जाति-वर्ण तथा सामाजिक एवं धार्मिक कुरीतियों, शोषित वर्ग को अपनी लेखनी के माध्यम से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया। वे इन समस्याओं का मात्र उद्घाटन ही नहीं करते, बल्कि उन्हें दूर करने की दिशा भी तय करते हैं।
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