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आदिवासी जीवन-यथार्थ और आदिवासी साहित्य

सुनील कुमार, डॉ.राजेश कुमार
Page No. : 1-6

ABSTRACT

बीसवीं शती के अन्तिम दशकों में भूमण्डलीकरण के विशाल जाल के अन्तर्गत पिछड़ी जातियाँ जो हाशिये पर पड़ी थीं उन्हें केन्द्र में लाकर खड़ा कर देने के प्रयत्न भी हुए थे। मसलन बहुराष्ट्रीय-बाजारी-नव उपनिवेशी शक्तियों के दमन से इन पिछड़ी जातियों की प्रगति का सवाल परिछिन्न हो गया। राजनीतिज्ञों ने गाँधी, अंबेडकर, बुद्ध आदि महत् व्यक्तियों के नामों को सामने रखकर जनता का उल्लू बनाते रहे। इक्कीसवीं शती में शोषितों की पीड़ा को वाणी देने का संकल्पबद्ध प्रयास धीरे-धीरे साहित्कारों द्वारा हो रहे हैं।


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