विभिन्नप्राकृतिकआपदाएंचिरकाल से जीवनचक्रकोप्रभावितकरतीरहीहैं। ये आपदाएं न केवल धरती की भौगोलिकस्थितिमेंपरिवर्तनकरदेतीहैं, अपितुइनकीविनाशलीला से जान-माल की व्यापकहानिहोतीहै।भूकम्प, बाढ़, बादलफटना, चक्रवात, तूफान, भस्खलन, हिमस्खलन इत्यादिआपदाओं के लिए भौगोलिकसंरचना के अलावामानव द्वाराविकास का अंधानुकरणभीजिम्मेदारहै।आपदाप्रबंधन एवंबचाव के लिए सुदृढसूचनातन्त्र संसाधनों का समुुचितउपयोगपुनर्निमाणऔरपुनर्वासकरना शामिलहै।साथही ऐसीआपदाओं के प्रतिपूर्वचेतावनीऔरतैयारीइनकीभयावताको कम करकरने के लिए अतिआवश्यक है। इस लेख मेंकहागयाहैकिकिसीभीसंगठन की उत्पत्तिहमेशाविकासवादीप्रक्रिया के माध्यम से होतीहै।राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूपमें ‘आपदाप्रबन्धन के महत्व की पहचान’ करतेहुए भारतसरकार ने अगस्त 1999 में एक उच्चस्तरीय समिति की स्थापना की तथागुजरातमेंआए भूकम्प के बाद एक राष्ट्रीय समिति की स्थापनाकी।जिसकाकार्यआपदाप्रबन्धनयोजनाओं की तैयारी के सम्बन्ध मेंसिफारिशेंकरना एवंप्रभावी शासनतन्त्रोंहेतूसुझाव प्रदानकरनाथाऔरआपदा के सन्दर्भमेंकेन्द्रसरकार द्वाराराष्ट्रीय आपदाअधिनियम 2005 बनायाऔरलागूकियागया। इस अधिनियम के द्वाराराष्ट्रीय आपदा से सम्बन्धितसंस्थाओं का निर्माणकियागयाहै।राष्ट्रीय आपदाप्रबन्धनप्राधिकरणआपदा के लिए नीतियों, योजनाओं एवंदिशा-निर्देशों का निर्माणकरने के लिए जिम्मेवारसंस्थाहै।जोआपदाओं के वक्त समय परप्रभावीप्रतिक्रियासुनिश्चितकरताहै।
Copyright © 2025 IJRTS Publications. All Rights Reserved | Developed By iNet Business Hub