समाज, साहित्य और पत्रकारिता एक दूसरे पर सहयोगी भी हैं और पूरक भी। समाज निर्माण में साहित्य की जिम्मेदारी है, तो पत्रकारिता की भी समाज के नवनिर्माण में अहम भूमिका है। आधुनिक परिवेश में पत्रकारिता की भूमिका साहित्य से अधिक इसलिए बढ़ गई हैं; क्योंकि साहित्य की अपेक्षा पत्रकारिता का संबंध समाज से शीघ्रता और तीव्रता से होता है, इसलिए मीडिया (पत्रकारिता) समाज की खबर लेता भी है और समाज को खबर भी शीघ्रता से देता है। पत्रकारिता साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसमें साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा समाज के साथ संबंध से अधिक गहरा और प्रतिदिन नवीनता के साथ होता है। भारतेंदु युग से लेकर वैश्वीकरण के दौर तक पत्रकार और साहित्यकार का संबंध गहरा और घनिष्ठ रहा है आजादी पूर्व के पत्रकार पत्रकार होने से पूर्व साहित्यकार होते थे। साहित्य की खुशबू और सादगी जहां पत्रकार की भाषा में होती थी वहीें खबर के प्रसार में भी मर्यादाबोध समाहित होता था। आधुनिक हिन्दी काल के पुरोधा और प्रथम कवि भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने स्वयं ‘ कवि वचन सुधा’ तथा ‘ हरिशचन्द्र मैगजीन’ और ‘बालाबोधनी’ जैसी नामचीन पत्रिकाओं का सम्पादन और संचालन सफलतापूर्वक किया। बंगला में ‘बंकिम’ का ‘बंगदर्शन’ और हिन्दी में भारतेन्दु मैगजीन’ समकालीन होने के साथ साथ समाज के लिए समान सामाजिक उद्धेश्य के लिए काम कर रही थी। तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों में साहित्यकार और पत्रकार दोनों समान रूप में समाज के नवनिर्माण में महती भूमिका निभाई। कहा भी जाता है कि साहित्यकार और पत्रकार का यह परम कर्तव्य बनता है कि वह समाज में नवनिर्माण की भूमिका में अग्रणी रहते है।
Copyright © 2025 IJRTS Publications. All Rights Reserved | Developed By iNet Business Hub