डाॅ॰ बलदेव वंशी के काव्य में राजनीतिक युगबोध
डाॅ॰ कमल
Page No. : 93-99
ABSTRACT
यद समकालीन परिवेश को देखा जाए तो भारत विस्फोटक स्थितियों के क्रम से गुजर रहा है, कई क्षेत्रों में संक्रमण लहरे उठ गिर रही हैं, तो कहीं उताल तरंगे है, किन्हीं क्षेत्रों में बहुत धीमी जीवन गति है तो कहीं तीखा वेग, जिसका अवरोध कठिन ही नहीं पड़ा बल्कि दुर्घटनात्मक खतरों तक बढ़ा है। डाॅ॰ नंद किशोर नवल ‘राजनीतिक और समकालीन कविता’ नामक अपने आलेख में ‘व्यवस्था विरोध को समकालीन कविता का प्रमुख नारा बताते हुए अपना मत इस प्रकार व्यक्त करते हैं ‘‘समकालीन कविता का प्रमुख नारा है - व्यवस्था विरोध। यह विरोध सही ढंग से किया जा रहा हो या गलत ढंग से, लेकिन इसमें कोई शक की बात नहीं कि यह विरोध राजनीतिक है। इस प्रकार समकालीन कविता मूलतः राजनीतिक कविता है।
समकालीन कविता का मुख्य सरोकार राजनीतिक युगबोध रहा है। वास्तव में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली जब आम आदमी की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रही तो उसका जनतंत्र से मोहभंग होने लगा। जनता राजनीति के असली चेहरे को पहचानने लगी। आम आदमी में ‘‘व्यवस्था के प्रति एक आक्रामक विद्रोह की भावना क्रमशः बलवती होने लगी, दिखाई देने लगा कि हमें जिन मानवीय मूल्यों, लोकतांत्रिक उपलब्धियों की कामना थी, वह एक पूरी समर्थ पीढ़ी ने विकृत कर दी। भविष्य की आशा और दिलासा सब झूठे पड़ गए। स्पष्ट हुआ कि किसी भी ‘चालक’ रास्ते थे व्यक्तिगत सफलता ही आज सबसे बड़ा मूल्य है।
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