मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का अभिन्न अंग है और यहां समाज भी अपने विकास के लिए अपने नागरिको पर निर्भर करता है। शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की कुंजी होती है और किसी भी समाज के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को उसके सदस्यों की उचित शिक्षा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता हैं। शिक्षा की गुणवत्ता सदैव शिक्षकों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शिक्षार्थी की उपलब्धि के लिए शिक्षक का ज्ञान, समर्पण, पेशेवर प्रतिबद्धता और शिक्षकों की प्रेरणा जिम्मेदार कारक होते हैं। ऐसे शिक्षकों का निर्माण करना आज दुनिया भर की सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है। आज ज्ञान की बढ़ती मात्रा के साथ, नए शैक्षणिक और मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों, दर्शन, समाजशास्त्र और वैश्वीकरण के प्रकाश में शिक्षक का काम अधिक चुनौतीपूर्ण हो रहा है। ऐसी शैक्षिक प्रणाली के लिए समाज को हमेशा कुशल शिक्षकों की आवश्यकता रहती है। यह सर्वविदित है कि शिक्षक राष्ट्रीय निर्माता है। इतनी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए शिक्षक का सक्षम होना बहुत आवश्यक है। प्रत्येक राष्ट्र के लिए ज्ञानवान, प्रभावी और कुशल शिक्षक प्रदान करना एक चुनौती है। शिक्षक का व्यवहार ही उसके द्वारा अपने काम के प्रति किये जा रहे प्रयासों का संकेत होना चाहिए। उनके व्यक्तित्व से अच्छी नागरिकता के लक्षण, व्यक्ति की गरिमा, अधिकार और कर्तव्य आदि प्रतिबिंबित होने चाहिए। तभी वह शिक्षक देश की युवा पीढ़ी को सक्षम, समृद्ध नागरिक बना सकेगा। आज के इस तेज प्रतिस्पर्धापूर्ण और परिवर्तनशील समय में की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें एक कुशल शिक्षक-शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है ताकि कर्मठ और सबल शिक्षकों का निर्माण किया जा सके जो हमारे समाज और देश को वैश्विक स्तर पर नेतृत्व योग्य नागरिक प्रदान कर सकता है। आज के दौर में कल्पनाशील और सुनियोजित शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है। वर्तमान पेपर का उद्देश्य भारत में शिक्षक शिक्षा की वर्तमान समस्याओं और संबंधित चिंताओं को समझना है और शिक्षक-शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु आवश्यक सुझाव देना है।
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