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बाल-साहित्य का उद्भव और विकास पर अध्ययन

खेम किरण, डॉ. नवनीता भाटिया
Page No. : 322-328

ABSTRACT

मनोविज्ञान एवं साहित्य का मूलाधार मानव मन का संवेग, संवेदना, भाव आदि है तथा दोनों ही मानव के हित की बात करते हैं। बाल्यावस्था मानव के समूचे जीवन की आधारशिला है। अतः इस अवस्था में ही उसके जीवन को सही संतुलित दिशा मिलनी आवश्यक है ताकि उसका समुचित एवं स्वस्थ विकास हो। बाल विकास के मनोविज्ञान ने साहित्य, कला तथा संस्कृति को प्रभावित किया है। विकासात्मक मनोविज्ञान आधुनिक युग की महती आवश्यकता है। जिसके लिए उचित वातावरण की व्यवस्था, सत् साहित्य पठन-पाठन की व्यवस्था होना जरुरी है। ताकि बालक के मानसिक विकास का ध्यान रखा जा सके जो कि एकांकी न होकर सर्वांगी हो। बालकों के स्वस्थ विकास हेतु बाल मनोविज्ञान आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा है जिसमें एकमात्र बाल जीवन की विभिन्न क्रियाओं, रुचियों एवं मनोवृत्तियों आदि पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् बच्चों की क्रियाओं, रुचियों और मनोवृत्तियों का अध्ययन करना उन्हें सही मार्ग में ले जाने का कार्य बाल मनोविज्ञान द्वारा ही होता है। बालक के लिएउसकी जिज्ञासा और कौतूहल की भावना को संतुष्ट करने वाले साहित्य की आवश्यकता है। ताकि बालकों में वैज्ञानिक दृष्टि विकसित हो, उनका स्वस्थ मनोविकास हो सके। वर्तमान में साहित्य की समस्त विधाओं यथा गीत, कविता, कहानी, नाटक, एकांकी, उपन्यास आदि में बाल साहित्य की रचना हो रही है। किसी भी प्रकार की पाठ्य-अपाठ्य सामग्री का प्रभाव बालकों पर अवश्य पड़ता है। कविता और गीत से बच्चों को विशेष आकर्षण होता है। कविता में लय और गीत का सौंदर्य बालकों कोप्रसन्न करता है, उनके मानसिक स्वास्थ्य को पुष्ट करता है।


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