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महात्मा गांधी और ग्राम स्वराज्य

श्रीम.जाधव ज्योती माधवराव, डॉ. प्रकाश हंबर्डे
Page No. : 204-207

ABSTRACT

इक्कीसवीं सदी में भारत को एक महाशक्ति राष्ट्र के रूप में संदर्भित करते हुए भले ही आ रहा हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चील की छलांग लगानी हो, तो यही ताकत है गांधी विचार (दर्शन) में प्रकट होते हैं। जब तक महात्मा गांधी ने सोचा सच है जब तक हर गांव स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और स्वशासित नहीं हो जाता भारत का समग्र विकास असंभव है। बेशक, उसके लिए, शासकों और महात्मा गांधी को देखकर ही प्रशासक विकास नहीं कर सकते गांधीजी के दृष्टिकोण (सोच) को लेकर आगे बढ़ना जरूरी है। आज महाराष्ट्र के साथ देश के लगभग सभी राज्यों के गांवों की स्थिति भयावह है आता हे भले ही देश को आजादी मिले लगभग 70 साल हो गए हों, लेकिन हजारों लोग अभी भी वहां हैं गांवों में बारहमासी सड़कें नहीं हैं, उन्हें पीने के पानी के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती है खर्च हो रहा है गांवों में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति व गुणवत्ता संवेदनशील व्यक्ति का रक्तचाप नहीं बढ़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मानव जीवन की आवश्यक और बुनियादी जरूरतें भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं नहीं हैं बुनियादी सेवाएं जैसे बिजली, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, शिक्षा, स्वच्छता आदि ग्रामीणों को सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि आजीविका के पर्याप्त साधन न मिलने से हजारों गांवों में रोजगार की तलाश में लोगों की भीड़ शहर की ओर दौड़ रही है। नतीजतन गांव ओस गिर रही है और शहर बकल (अव्यवस्थित) हो रहे हैं। थोड़ा सीखने वाला आदमी गांव जा रहा है तो ज्यादा पढ़े-लिखे लोग देश छोड़कर जा रहे हैं। शहरों की ओर पलायन रोकना है तो ग्रामीण क्षेत्रों में गांव में ही लोगों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराना समय की मांग है और अगर इन गंभीर समस्याओं को मिटाना है तो महात्मा गांधी जी ग्राम स्वराज्य की अवधारणा को आधार मानकर कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं है नहीं। 


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