प्रेमचंन्द के उपन्यास में राजनीतिक चेतना पर अध्ययन
सचिन, डॉ. मुकेश कुमार
Page No. : 117-123
ABSTRACT
प्रेमचंन्द के सभी उपन्यासों को एक स्थान पर यदि रखें तो समझें यह कि सम्पूर्ण समाज ही एक स्थान पर फलीभूत हो उठा है। सभी उपन्यास एक स्थान पर एकत्रित होकर अपने समाधान के लिए अपना आँचल पसारे खड़ी हैं। प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, कर्मभूमि, गोदान विशेष रूप से शोषण की समस्या को उजागर करते हैं। प्रतिज्ञा में विधवा-समस्या, सेवासदन में वेश्या-जीवन की समस्या तथा गबन में मध्यवर्गीय परिवार की समस्याएँ उठायी गयी हैं। गबन में चरित्र-चित्रण बड़े ही सुन्दर ढंग से हुआ है। रंगभूमि तथा गोदान में अनेक कथाएँ तथा अनेक सामाजिक समस्याएँ हैं। जमींदार, पूँजीपति, कृषक, मजदूर, अहलकार, दलाल आदि सभी आये हैं। नगरीय जीवन का भी चित्रण हुआ है। कर्मभूमि उपन्यास राष्ट्रीय आन्दोलनों को प्रतिबिम्बित करता है। इसमें दो कथाएँ हैं-एक ग्रामीण जीवन की तथा दूसरी नगरीय जीवन की आदर्शाेन्मुख यथार्थवाद का सहारा लेकर उन्होंने बड़ी कुशलता के समाज के सत्य को उद्घाटित किया है।
प्रेमचंन्द ने औपन्यासिक जगत के सृजन में कहीं तो स्वयं आकर, कहीं पात्रों के माध्यम से भाषा का बहुत कुशल एवं सटीक प्रयोग किया है। वे भाषा-शैली के अद्भुत शिल्पी थे। अभिव्यक्ति और भाषा आदि की पद्धतियों की सबसे सफलता एवं विशेषता यही है कि वह सर्जक कलाकार की भावनाओं को सभी दृष्टियों में सम्प्रेषणीय बना सके। पाठक उसके समग्र भाव-बोध को सहज ही अपनाकर आविर्भूत हो सकें। वह किसी भी प्रकार की दुरूहता, ऊबाहट तथा बोझिलता का अनुभव न करें। यह कहा जा सकता है कि प्रेमचंन्द अपने उपन्यासों में जिन समस्याओं से पाठकों को रू ब-रू कराना चाहते थे, अपने तत्कालीन समाज को यथातथ्य रूप अंकित करना चाहते थे।
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