”राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ‘आधुनिक बोध’ में आधुनिकता के बारे में कहा है- “जिसे हम आधुनिकता कहते हैं, वह एक प्रक्रिया है।” हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री गिरिराज किशोर ने आधुनिकता के बारे में कहा है- “आधुनिकता वही होती है जो वर्तमान को स्वीकार करे और उसके अनुरूप रूढ़ियों में परिवर्तन लाए।” आधुनिकता को हमें विचारों से जोड़ना चाहिए तभी हम आधुनिक हो सकेंगे अन्यथा हम लोग आधुनिक न होकर उच्छृंखल हो जाएंगे। डॉ. भैरूलाल गर्ग ने ‘आज की हिंदी कहानी’ में आधुनिकता के बारे में कहा है- “आधुनिकता की कसौटी मात्र बाह्य परिवर्तन ही नहीं है अपितु जीवन मूल्य, विचारधाराएँ, दृष्टिकोण और जीवनानुभव हैं जो कि बहुत कुछ आंतरिकता से संबंध रखती है।” डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी आधुनिकता को गतिशीलता मानते हुए कहते हैं कि बुद्धिमान आदमी एक पैर से खड़ा है दूसरे पैर से चलता है, यह खड़ा पैर परंपरा, चलता पैर आधुनिकता है। डॉ. इंद्रनाथ मदान के अनुसार दृ“यह एक प्रक्रिया है, जिसे वाद के साँचे में ढाल कर जड़ बनाने की कोशिश नाकाम सिद्ध होती रही है, गति को स्थिति का रूप देने में असफलता का मुँह ताकना पड़ा है, आधुनिकता स्थिति को तोड़कर गति में जारी होती रही है।” विपिन अग्रवाल ने ‘आधुनिकता के पहलू’ में कहा है- “आधुनिकता वास्तव में एक अर्द्ध विकसित प्रक्रिया है जिसकी कोई स्थूल, पूर्वनिश्चित और अपरिवर्तनीय दिशा नहीं है। मनुष्य और उसकी अर्द्ध विकसित अथवा अल्प विकसित क्रियाएँ आधुनिकता को परिभाषित करती हैं, जो जितना आधुनिक है वह उतना ही मनुष्य है।” डॉ. कुमार विमल ‘अत्याधुनिक हिंदी साहित्य’ में लिखते हैं- “आज की स्थिति का यथार्थ परिज्ञान ही आधुनिकता का आधार है।”
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