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राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराजा लिखित ग्रामगीता का चिकित्सक अभ्यास

सोनवणे सतिश शिवाजी, डॉ. नवनीता भाटिया
Page No. : 147-153

ABSTRACT

राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय उत्साह की भावना से ओऔत-प्रोत जिन संत कवियों ने राष्ट्रोन्नति में योगदान दिया है, उनमें राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का विशिष्ट स्थान रहा है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रसंत तुकडोजी का साहित्य बहुआयामी है, जिसका महत्व अपने - आप में कुछ अलग हटकर दिखाई देता है। मनुष्य के जीवन पर अनेक घटनाओं, व्यक्ति विशेष एवं परिवेश का प्रभाव पड़ता रहता है जिनसे उसका आंतरिक व्यक्तित्व विनिमित होता जाता है। यही शाश्वत सिद्धांत राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के जीवन पर पूर्णतः लागू होता है। उनके जीवन पर उनके माता-पिता एवं गुरु श्री आडकोजी महाराज का जो प्रभाव पड़ा था, जिससे वे जन-जन में प्रचलित हुए थे। 
बीसवी शताब्दी के आरंभ में जन्मे राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के पूर्वज श्री जाणुजी महाराज (प्रपितामह) उत्तर भारत से अमरावती के “यावली‘ ग्राम में आ कर रहने लगे थे। इनके दी पुत्र में से एक पुत्र का नाम नामदेव उर्फ बंडोजी था। जिनके पुत्र-माणिक उर्फ राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज हुए हैं। 
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का जन्म महाराष्ट्र के विदर्भ स्थित अमरावती जिले के यावली नामक ग्राम में 30 अप्रैल, 1909 को हुआ था। उनके माता का नाम श्रीमती मंजुला देवी था, जो भोली - भाली गृहिणी थी। उनका बाल्यकाल शिक्षा के बजाय शिवालय में रहकर, श्री आडकोजी महाराज के सानिध्य में व्यतीत हुआ था। गुरु आडकोजी की प्रेरणा से ही राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज काव्य- सृजन करने लगे और माणिक से तुकड्या नाम से संबोधित किए जाने लगे थे।


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