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सतनामी सम्प्रदाय का भारतीय इतिहास में भूमिका

अनुराधा कुषवाहा
Page No. : 54-56

ABSTRACT

सत्नाम क्या है ? इस संबंध में ‘आनंद रहाटे’ का मानना है कि ‘‘सत्पुरूषों का स्मरण एवं अभिवादन ही सतनाम है।’’ इससे प्राणी को सद्बुद्धि एवं प्रेरणा मिलती है। सतनाम केवल स्मरण तक ही सीमित नहीं है, अपितु इससे मानव में सूक्ष्म चैतन्य का संचार होने लगता है। अर्थात् सत्नाम एक संस्कार है, जो प्राणी को सुखी एवं समृद्ध बनाता है। कुछ लोग सतनामियों को एक जाति विषेष से सम्बन्धित स्वीकारते है, परन्तु ऐसा स्वीकारना नितान्त भ्रामकता है। जिस प्रकार दान करने वालेे को दान, स्वाभिमान रखने वाले को स्वाभिमानी, दादू पंथ को स्वीकारने वाले को दादू पंथी, ईसा को स्वीकारने वाले को ईसाई कहा जाता है। ठीक सत्य की राह पर चलता है। इस मतानुसार किसी भी जाति अथव पंथ का व्यक्ति सतनामी हो सकता है।


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