भारत में उपलब्ध अलौकिक ज्ञान कब भारत में आकर मनुष्य को आलोकित किया, वेदमन्त्रों का रचयिता कौन है? ऋषि ही इन मन्त्रों के वास्तविक प्रणेता हैं या जो भारतीय परम्परा मानती है कि वे द्रष्टा हैं, क्या यही सत्य है? इन प्रश्नों का समाधान असम्भव तो नहीं, कठिन अवश्य है। भारतीय परम्परा के अनुसार वेद मन्त्रों की रचना के सम्बन्ध में विचार किया गया है- परम्परा में वेद नित्य, शाश्वत, सनातन तथा अपौरूषेय हैं। मीमांसक इसके प्रबल पोषक हैं। मीमांसक मानते हैं कि जगत अनादि काल से चला आ रहा है, इसी तरह सदैव चलेगा न कभी इसकी सृष्टि हुई है और न तो कभी प्रलय होगी। वेदान्त दर्शन की मान्यता है कि वेद अनादि और अपौरूषेय ज्ञान हैं, प्रलय के पश्चात् भी वेद ब्रह्म में निहित रहते हैं। सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ऋषियों के ह्दय में वेद का प्रकाशन करता है।- मैक्समूलर, मैक्डानक, जैकोबी, आदि ने वेदों को नित्य नहीं माना और भाषा की प्राचीनता के आधार पर ऋग्वेद को सबसे प्राचीन मानकर उसका काल निधारित करने का प्रयास किया है।
Copyright © 2025 IJRTS Publications. All Rights Reserved | Developed By iNet Business Hub