डॉ. महेन्द्रभटनागर के गीत संवेदना और शिल्प की दृष्टि से नितान्त प्रौढ़ और स्तरीय है। उन्होंने शोषण, उत्पीड़न, अन्याय की दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध युद्ध के उद्देश्य से शक्ति, गति, मुक्ति की चेतना से अनुप्राणित एक व्यापक स्वातंर्त्य-दर्शन अपने गीतों के माएयम से प्रस्तुत किया है। इस स्वातंर्त्य -दर्शन में उनका प्रगति-दर्शन भी समाहित है और आलोक-दर्शन भी। उनकी अनेक कविताओं में जिजीविषा और संघर्ष की अदम्य, सजग चेतना के दर्शन होते हैं।
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