नरेन्द्र मोहन ने अपने नाटकों के माध्यम से आज के मनुष्य और समाज को समझने, उनकी विसंगतियों और तनाव को उभारने का प्रयास प्रमुख रूप से किया है। वे अपने नाटकों में निर्भिकता के साथ वर्तमान के जटिल प्रश्नों से जूझते दिखाई देते है। सामाजिक दबावों के प्रतिफलन में ये नाटक इतिहास की ओर मुड़ते हुए भी युगीन आकांक्षाओं को सार्थकता प्रदान करते है। नरेन्द्र मोहन के प्रायः सभी नाटक सत्य के अन्वेषी है जिसमें उन्होनें राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय आदि संदर्भो को उभारने का प्रयास प्रमुख रूप से किया है। नरेन्द्र मोहन के काव्य में कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में नाट्य स्पन्दित रहा है जो अन्ततः नाटक की रचना के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। ‘‘नरेन्द्र मोहन के नाटक आज के विश्रृंखल और उच्छृंखल समाज के बहुविध रूपों, मुखौटों और व्यवहारों की खुली तथा व्यंग्यपूर्ण दृष्टि से देखने, खबर लेने के सचेष्ट प्रयास है। अपनी विषय वस्तु के अनुरूप ही उनके नाटकों के संवादीय तेवर भी देखे जा सकते है। ये तेवर स्थिति के अनेसार बदलते है अथवा स्थितियाँ इनके अनेसार बदलती है।’’
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