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भारतीय संविधान तथा महिलाएं

सुमन देवी, डॉ अनिल कुमार
Page No. : 55-60

ABSTRACT

भारतीय समाज में आजादी के सत्तर वर्षों के उपरांत भी महिलाओं की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। भारवर्ष में आधुनिकता के आगमन के साथ साथ ही महिलाओं के वर्ष होने वाले अपराधों में भी वृद्धि होती जा रही है। महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में वृद्धि के आकड़ें काफी चौंकाने वाले है। आधुनिक यह में भी महिलाओं को रीति रिवाजों, यौन अपराधों, घरेलू हिंसा, अशिक्षा, कुपोषण, कन्या भ्रूणहत्या, सामाजिक असुरक्षा तथा उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।
पिछले कुछ वक्त से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रशासन के द्वारा बहुत से कड़े कदम उठाये जा रहे है। प्रशासन के द्वारा महिलाओं को सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया है। प्रशासन के द्वारा ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उनके लिए अधिकारों का सरंक्षण, सामाजिक नजरिये में सकारात्मक बदलाव, शैक्षणिक स्तर में सुधार, खेलों में महिलाओं का योगदान तथा सीमेन, रचनात्मक क्रियाकलापों, व्यापर, संचार, विज्ञान तथा तकनीकि जैसे क्षेत्रों में बदलाव देखने को मिले है। यह तो एक नए युग की शुरुआत मात्र है। आधुनिक युग में जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान हर क्षेत्र में भागीदारी नहीं मिल जाती तब तक भारतवर्ष की आजादी अधूरी मानी जाएगी।
विश्व भर में महिलाएं किसी न किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती आ रही है। समय - समय पर महिलाएं अपने हकों के लिए आवाज उठती आ रही है। भारतवर्ष में महिलाओं का शोषण रीती रिवाजों के नाम पर होता आया है। प्राचीन समय में भी महिलाओं पर हो रहे अत्याचरों में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। आधुनिक युग आते आते इन अत्याचारों ने विकराल रूप धारण कर लिया है। भारतीय कानून के द्वारा महिलाओं की मदद करने तथा उन्हें सम्मान अधिकार दिलाने में काफी मदद की है। भारतीय संविधान के द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान मौलिक अधिकार दिए है।


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