‘दलित वह व्यक्ति है जो स्वार्थ सभी प्रकार (आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व साहित्यक रूप) से उसमें हीन भावना भर एक वर्ग विशेष ने दबा रखा है । दलित शब्द की परिभाषा को केवल जाति व सामाजिक आधार बनाने वाले ‘दलित शब्द’ के साथ भी दलितपन करते हैं । उन्हें दलितों के जीवन को गहरे से अध्ययन करना होगा । इस ब्राह्मणवादी जातिवाद रूपी बंधन की रेखा को काटने कि बजाय एक सर्व समाज, मानवीयता, दलित एकता, स्वतन्त्रता व भाई-चारे की सामानांतर रेखा बना दी जाए यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था अपने आप धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
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