प्रेमचन्दजी हिन्दी कथा साहित्य में मेरुदण्ड के समान है। वे जितने साहित्यकार के रूप में महान थे उतने ही वे मनुष्य के रूप में भी महान थे। उनका व्यक्तित्व का और कृतित्व एक युगान्तरकारी घटना है। विद्वानों का मानना है कि प्रेमचन्द के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में प्रेमचन्द ही माने जा सकते हैं। दोनों ने निर्धनता में दिन काटे है। परन्तु प्रेमचन्द सूझ-बूझ से अपनी निर्धनता को दूर कर सके, जबकि प्रेमचन्द की परिस्थिति में जीवन के अंत तक को परिवर्तन नहीं आया। अपने प्राणों को निचोड़कर वे लिखते गये। उनके हृदय में अश्रु छिपे थे। उन्होंने किसान जाति के प्रतिनिधि के रूप में मानव माञ के वेदना को व्यक्त किया है।
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