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प्राचीनभारत से मध्यकालभारतमेंवर्णव्यवस्था का बदलता रूप

मनीता
Page No. : 51-54

ABSTRACT

प्राचीनभारत के सामाजिकस्तरीकरण व वर्गीकरण की प्रक्रिया व ढ़ांचेको समझने के लिए वर्णव्यवस्था के स्वरूप्को समझनाअत्यंतआवश्यक है।प्राचीनकालमेंआर्यों ने भारतमेंउच्चस्तरीय समाज की स्थापना की थी। उनके समाज की मुख्य विशेषताक्रमशः पवित्र जीवन व उच्चनैतिकचरित्र थी। उस समय समाजव्यवसाय के आधारपरबँटाहुआथा। यह कुलमिलाकरचारवर्णोंमेंबंटाथा।हरव्यक्तिअपनी रूचि व योग्यता के आधारपरअपनावर्णचुनसकताथा।वर्ण शब्द की व्युत्पत्तिसंस्कृतके ’वर्ण’ ’वरणे’ अथवा ’वरी’ धातु से हुईहैजिसकाअर्थहै ’’ चुनना या वरणकरना’’। संभवतः वर्ण से तात्पर्य ’वृत्ति’ स किसीव्यवसाय के चुनने या अपनाने से है।वास्तवमेंवर्ण उस सामाजिकवर्ग की ओरइंगितकरताहैजिसकासमाजमेंविशिष्टकार्य व स्थानहै, औरइनविशेषताओं के कारणसमाज के अन्य वर्गोंअथवासमूहों से सर्वथाअलगहोताहैतथाअपनेहितोंऔरस्थितियों के विषय मेंजागरूकहोताहै।अनेकस्थलोंमें ’रंग’ के संदर्भमेंभीइसकाप्रयोगहुआहै।


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