Archives

  • Home
  • Archive Details
image
image

भारतीय सन्दर्भ में जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण असन्तुलन

रीतु
Page No. : 25-29

ABSTRACT

जलवायु परिवर्तन का आशय प्रकृति के तापमान में बदलाव से है। मानव की विलासतापूर्ण जीवन शैली एवं घटते वन क्षेत्र के कारण ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। इनमें कार्बन डाई ऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रेस ऑक्साइड और जलवाष्प शामिल है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में सहायक रहीं ये गैसें ताप वृ़िद्ध के कारण खतरनाक साबित हो रही है। भारत जलवायु परिवर्तन के लिए कानूनी बाध्यता में न बंधकर जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी जिम्मेदारी से स्वयं अपने स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए तैयार है। वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साईड का स्तर बढ़ने से होने वाला जलवायु परिवर्तन आज पर्यावरण की गंभीर समस्याओं में से एक है। आर्थिक क्रियाकलापों का सामान्य विस्तार, बढ़ती जनसंख्या और जीवाश्म ईधन का इस्तेमाल ऐसे कारण है।, जिनसे मानवजनित समस्या से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय (यूएनएफसीसीसी) का गठन किया। इसका उदद्ेश्य वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के संकेन्द्रण को स्थिर बनाना है जिससे जलवायु प्रणाली में मानवजाति खतरनाक हस्तक्षेपों को रोका जा सके। बाद में वर्ष 1997 में कन्वेंशन के सदस्य राष्ट्रों ने क्योटो समझौता स्वीकार किया, जिसमें औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की दृष्टि से बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित किए गए। प्रस्तुत शोध में जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण असंतुलन पर प्रकाश डाला गया है।


FULL TEXT

Multidisciplinary Coverage

  • Agriculture
  • Applied Science
  • Biotechnology
  • Commerce & Management
  • Engineering
  • Human Social Science
  • Language & Literature
  • Mathematics & Statistics
  • Medical Research
  • Sanskrit & Vedic Sciences
image