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योगदर्शन के अनुसार चित्तभूमियाँ एंव क्लेश

सोनम
Page No. : 12-15

ABSTRACT

योग-दर्षन अन्य दर्षनों की अपेक्षा अधिक प्रायोगिक है। जैसे अन्य दर्षनों व्यक्ति (आत्मा) के बन्धन व बन्धन कारणों पर अधिक चर्चा रहता है। परन्तु मोक्ष को लेकर यह ‘‘योग-दर्षन’’ अन्य दर्षनों की अपेक्षा अधिक सक्रिय है। मोक्ष विवेचन भी सिर्फ षाब्दिक-प्रपंच का विशय न होकर प्रायोगिक पक्ष पर अधिक बल देता है। ‘निरूद्धावस्था’ अन्तिम चरण है ध्यानावस्था का। इस अवस्था में सम्पूर्ण विशय दूर हट जाते हैं। इन्द्रियों का बाह्य विशय बिलकुल भी आकर्शित नहीं कर पाते। इस स्थिति में बैठा योगी ईष्वर तुल्य अवस्था में होता है। ध्यान अवस्था की पराकाश्ठा इसे कहा गया है। श्रीमद्भागवद्गीता इस स्थिति को ‘ब्राह्यीस्थिति’ षब्द से व्यवहृत करती है।
‘‘एव ब्राह्यीस्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति’’ -गीता


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