योग एक दर्षन है। यह जीवन को सम्पूर्ण रूप से देखने की दृष्टि देता है। इसमें षरीर की उपेक्षा नहीं है, वरन् उसे सषक्त बनाने पर जोर दिया गया हैं। स्वस्थ षरीर के बिना साधना नहीं हो सकती। इसलिए कहा जाता है ‘‘षरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’’ षरीर निष्चय ही सबसे पहला धर्म का साधन है।
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