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चार्वाक् दर्षन का तत्वमीमांसीय विवेचन

हरीश दत्त
Page No. : 40-42

ABSTRACT

बृहस्पति प्रवर्तित ’चार्वाक्-दर्षन’ का अपर नाम ’लोकायत’ उसकी सामान्य जनमानस के लिए ’सुगम-ग्राह्यता’ का द्योतक है। अन्वय-व्यतिरेक से देहात्मवाद की स्थापना यहाँ की गई है। आकाष को छोड़कर पृथ्वी, जल, तेज, वायु की सत्ता का स्वीकार किया है। स्वर्गादि को मूर्खों की कल्पना मात्र बताया गया है। प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। इसी आधार पर आकाष-स्वर्गादि की ग्राह्यता पर प्रष्नचिन्ह लगाया जाता है। क्योंकि अनुमान प्रमाण के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं। आनन्दमय जीवन को ही स्वर्ग बताया है। मृत्यु-मोक्षरूप में स्मृत है। आनन्दवाद की अतिषयेन स्थापना हेतु नैतिक- सामाजिक मूल्यों की बलि दी गई है।


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