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प्रेमचन्द साहित्य में नारी जीवन के विविध पक्ष

सुमित रानी पुत्री श्री सूरजभान
Page No. : 24-28

ABSTRACT

हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचन्द जी का नाम उनके कथा साहित्य के लिए प्रसिद्ध है । वे जनमानस के लेखक कहे जाते हैं । उनकी रचनाओं का उदेद्श्य केवल मनोरंजन नहीं था, अपितु समाज के लिए उपादेय एवं कल्याणकारी सिद्ध होना था। वे जन्मजात प्रतिभा के सम्पन्न साहित्यकार थे । उनके साहित्य लेखन के विषयों से तो तत्कालीन साहित्य कि दिशा एवं दशा दोनों ही बदल गई । प्रेमचन्द साहित्य को मानव जीवन का प्रतिबिम्ब माने तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । उनके साहित्य पर तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि विभिन्न परिस्थितियों का प्रभाव देखा जा सकता है । जीवन के सभी पक्षों पर अपनी लेखनी खूब चलाई है । समाज में व्याप्त विभिन्न कुप्र्रथाओं जैसे- बाल-विवाह, बहुविवाह, वेश्या समस्या, परदा प्रथा, पारिवारिक शोषण आदि में फंसी हुई नारी जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने के साथ-साथ उनका समाधान भी सुझाया है । प्रेमचन्द जी की रचनाओं पर दृष्टि डाले तो विशेष रुप से नारी के दुख-दर्द, उसकी कुंठाग्रस्तता एवं लाचारी का व्यापक चित्रण किया गया है । इनकी रचनाओं में जहाँ नारी के विविध रूपों में अत्याचार सहन करती रहती है वहीं दूसरी तरफ, आर्दश माँ, बहन, बेटी, बहु आदि रूप में सबल भूमिकाएँ निभाकर हर रिश्ते को जीवन्त बनाती हुई नजर आएगी । इनके साहित्य में नारी पात्रों की कोई कमी नहीं है । कुछ पात्र तो इतने सशक्त हैं कि उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता । उन्होनें हर समाज, हर वर्ग, हर जाति एवं हर समुदाय की नारी को किसी-न-किसी रूप में अपनी चेतना में शामिल किया है। प्रस्तुत लेख में प्रेमचन्द जी के साहित्य में वर्णित नारी पात्रों के जीवन के विभिन्न प़क्षों को उजागर करने का प्रयास किया गया है ।


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