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किम् किम् न साधयतिकल्पतेवविद्या

सुमितरानी
Page No. : 9-12

ABSTRACT




’किम् किम् न साधयतिविद्या‘ हमारे शास्त्रों मे लिखा हैकि-कल्पलता के समानविद्या से क्या-क्याप्राप्त नही होताहै? अर्थात् विद्या से तो सब कुछप्राप्तहोसकताहै।प्राचीनभारतीय मनीषी इस तथ्य से भलीभांतिअवगतथेकिशिक्षा व्यक्ति के सर्वांगिणविकास, समाज की चर्तुमुखीउन्नति एवंसभ्यता की बहुमुखीप्रगति की आधारशिलाहै।इसीकारणप्राचीन समय मेंशिक्षा को न तोपुस्तकीय ज्ञान का प्रर्यायवाचीमानागयाहैऔर न हीजीविकोपार्जन का साधन।इसकेविपरीतशिक्षा को वो प्रकाशमानागयाहैजोव्यक्तिकोअपनासर्वांगिणविकासकरने, उत्तम जीवन व्यतितऔरमोक्ष प्राप्तकरनेमेंसहायतादेतीहै।शिक्षा कोप्रकाश एवं शंाति का ऐसा स्त्रोतमानागयाहैजोहमारी शारीरिक, भौतिकऔरआध्यात्मिक शक्तियोंतथा क्षमताओं का निरंतर एवंसामजस्यपूर्णविकासकरकेहमारेस्वभावकोपरिवर्तितकरतीहैऔरउसेउत्कृष्ट बनातीहै।विवेकानन्दजी के अनुसारः-
‘‘शिक्षा मनुष्य मेंपहले से मौजूददैवीपूर्णता का प्रत्यक्षीकरणहै‘‘
वेआगेकहतेहैं, ‘‘हमे ऐसीशिक्षा की आवश्यकताहैजोहमाराआचरणबनाए, हमारेमानसिक बल कोबढ़ाए, बौद्विकता का विकासकरेऔरजिसके द्वारामनुष्य आत्मनिर्भरहोजाए‘‘।
शिक्षा तोमनुष्य को एक पुष्प की भांतिविकसित एवंसुगंधितहोनेमेंसहायताकरतीहै।जोअपनीसुंदरता एवंसुंगध चारोंऔरफैलाताहै। ‘‘पौधेकृषि से विकसितहोतेहैंऔरमनुष्य शिक्षा से‘‘ शिक्षा द्वाराहीबच्चाकिसीभीसमाजमेंअपनेआपकोसमायोजितकरआत्मिकऔरराष्ट्र के विकास की ओरअग्रसरहोताहै।इशावास्योपनिषद के इस श्लोक से शिक्षा के महत्वको समझा जासकताहै ‘विद्यायाऽमृतमश्नुते‘ अर्थातविद्या से अमरताकोप्राप्तकियाजासकताहैप्रस्तुतलेख के माध्यम से शिक्षा के इस कल्याणकारी रुप कोप्रकटकरने का प्रयासकियागयाहै।


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